समय से पहले जन्मी बच्ची को दो माह बाद मिली माँ की गोद, बच्ची को 50 दिन तक बाई-पेप और वेंटीलेटर पर रखा गया, मित्तल हॉस्पिटल के एनआईसीयू स्टाफ और चिकित्सकों की टीम ने दी सेवाएं
अजमेर (कार्तिक शर्मा) मित्तल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर अजमेर में प्री टर्म डिलीवरी के साथ, लो बर्थ वेट (एलबीडब्ल्यू) जन्मी एक बच्ची को दो माह बाद उसके माता- पिता की गोद में सौंप दिया। बच्ची को जन्म से 50 दिन तक बाई-पेप और वेंटिलेटर पर गहन चिकित्सा निगरानी में रखा गया। प्रसूता 6 माह और कुछ दिन की गर्भवती थी तब उसने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया। जो शिशु सुरक्षित रहा जन्म के वक्त उसका वजन मात्र 800 ग्राम था और उसका जीवन सुरक्षित रख पाना बहुत ही चुनौती भरा था।
मित्तल हॉस्पिटल के गायनोकोलॉजिस्ट डॉ अदिति सिंह राव, नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ रोमेश गौतम, शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ प्रशांत माथुर, डॉ सुनील गोयल, डॉ प्रीति गर्ग, शिशु रोग विशेषज्ञ क्रिटिकल केयर डॉ सुनील परिहार और मेटरनिटी एवं एनआईसीयू नर्सिंग स्टाफ ने टीम भावना से बच्ची के साथ मेहनत कर उसे सुरक्षित कर उसके माता-पिता को सौंप दिया।
मित्तल हॉस्पिटल की सीनियर गायनोकोलॉजिस्ट डॉ अदिति सिंह राव ने बताया कि ब्यावर की रहने वाली प्रसूता का जोखिमपूर्ण अवस्था में प्रसव कराया गया। प्रसूता ने आईवीएफ प्रक्रिया से गर्भधारण किया था। उसकी अचानक 6 माह की गर्भावस्था के समय तबीयत खराब हो गई थी। समय पूर्व प्रसव से सुरक्षित रहे एक नवजात का वजन भी मात्र 800 ग्राम था, लिहाजा उसकी रक्षा चिकित्सकों के लिए बड़ी चुनौती हो गई थी।
मित्तल हॉस्पिटल के नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ गौतम ने बताया कि जन्म के बाद बच्ची को टोटल पेरेंटल न्यूट्रेशन पर रखा गया। पहले दस दिन वेंटिलेटर पर रखा गया फिर उसे बाइपेप पर गहन शिशु चिकित्सा इकाई में निगरानी में रखा गया । शिशु का इस दौरान दो बार ब्लड ट्रांसफ्यूजन भी किया गया। उन्होंने बताया कि जन्म के बाद जांच में बच्ची के फेफड़े कमजोर पाए गए थे। इससे बच्ची को सांस लेने में भी दिक्कत हो रही थी। एनआईसीयू के स्टाफ ने भरपूर मेहनत की और आखिर बच्ची का वजन बढ़ने लगा।
डॉ गौतम ने बताया कि 6 माह और कुछ दिन में जन्मे बच्चों को देश भर में जीवित दर करीब 20 से 30 प्रतिशत है। इसकी तुलना में अजमेर के मित्तल हॉस्पिटल में क्रिटिकल केयर बच्चों की जीवित दर 98 प्रतिशत है। उन्होंने बताया कि विगत साढ़े तीन साल में लगभग 15 सौ बच्चों को सुरक्षित माता-पिता की गोद में सौंपा जा चुका है। इन नवजात बच्चों को उनकी माताओं ने छह से सात माह में ही जन्म दे दिया था। जन्म के समय बच्चों का वजन भी काफी कम था।
नवजात बच्ची के पिता ने मित्तल हॉस्पिटल के चिकित्सकों एवं एनआईसीयू के नर्सिंग स्टाफ की मेहनत का दिल से शुक्रिया जताया। उन्होंने बताया कि जच्चा व बच्चा दोनों स्वस्थ हैं। बच्ची का वजन बढ़ गया है। उल्लेखनीय है कि अजमेर संभाग में एक मात्र मित्तल हॉस्पिटल ही है जहां प्री टर्म डिलीवरी के साथ, लो बर्थ वेट (एलबीडब्ल्यू) नवजात का जीवन सुरक्षित बनाए रखने के लिए सभी सुपरस्पेशियलिटी सेवाएं और साधन उपलब्ध है।
प्री टर्म डिलीवरी में शिशु का बचाना ही मकसद नहीं होता
मित्तल हॉस्पिटल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ प्रशांत माथुर ने कहा कि प्री टर्म डिलीवरी में शिशु को बचाना ही मकसद नहीं होता, बच्चा जीवित रहने के बाद भी अच्छे से बोल सके, समझ सके, चल सके, खाना पीना ठीक से कर सके, यानी उसके सारे अंग सही से काम करने लगे इस सब को भी जांचा जाता है। सबसे अहम बात है कि किसी भी प्रीमेच्योर बच्चे को रेफर कर अजमेर से बाहर नहीं भेजना पड़ा है। यह एक चिकित्सक और नर्सिंग स्टाफ के धैर्य, देखरेख और मेहनत को दर्शाता है। नर्सिंग अधीक्षक राजेन्द्र गुप्ता, एनआईसीयू स्टाफ स्वर्णलता एंड्रयूज एवं टीम का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
प्रसूता और नवजात को मिलता है उपयुक्त वातावरण
डॉ सुनील परिहार ने बताया कि प्रीमैच्योर शिशुओं को संक्रमण रहित वार्म वातावरण में रखना, नवजात पर निरंतर नजर बनाए रखना, बीमारी का पता कर उसका तुरंत उपचार शुरू करना, शिशु के वजन और विकास में अपेक्षित वृद्धि पर बराबर निगरानी रखना प्रमुख होता है। मित्तल हॉस्पिटल में संसाधनों की दृष्टि से नवजात शिशुओं के लिए आधुनिक उपकरण उपलब्ध हैं, जिससे नवजात शिशु के श्वास, आँख, ब्रेन, हार्ट, कान आदि से संबंधित किसी भी परेशानी की जांच व उपचार तुरंत संभव हो पाता है।